वृन्दावन शोध संस्थान द्वारा हिन्दी पखवाड़ा के अंतर्गत हिन्दी की सजल विधाः स्वरूप और विकास विषय पर ऑनलाइन वेबिनार
वृन्दावन शोध संस्थान की ओर से संस्थान में दिनांक 15 सितम्बर, 2021 को प्रातः 11ः30 बजे संस्कृति विभाग उ0प्र0 के सौजन्य से आजादी का अमृत महोत्सव द्विवर्षीय कार्यक्रम श्रृंखला के अंतर्गत हिन्दी पखवाड़ा के अवसर पर ‘‘हिन्दी की सजल विधाः स्वरूप और विकास’’ विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। इसके अंतर्गत किशोरी रमण महाविद्यालय, मथुरा के पूर्व सहा0 प्रोफेसर एवं सजल सर्जना समिति के अध्यक्ष डॉ0 अनिल गहलौत द्वारा ऑनलाइन व्याख्यान प्रस्तुत किया गया।
अपने व्याख्यान में डॉ0 गहलौत ने कहा कि हिन्दी को समृद्ध करने की दिशा में किया गया एक सार्थक प्रयास है सजल। वस्तुतः सजल का प्रादुर्भाव गजल की पूर्व पीठिका के कारण हुआ। सजल इस रूप में सामने आई जिसके अंतर्गत उर्दू में प्रचलित नुक्तों को पूर्णतयः हटाया गया साथ ही हिन्दी के शब्दों का प्रयोग मान्य किया गया। बहुत ही आवश्यक होने पर उर्दू के वे शब्द सजल में स्वीकार किए जाते हैं जो विषयानुसार व प्रसंगानुसार अपरिहार्य हों। हिन्दी की सजल विधा को विख्यात गीतकार श्री गोपाल दास नीरज के साथ ही प्रसिद्ध रचनाकार श्री सोम ठाकुर का भी सान्निध्य और स्वीकृति प्राप्त हुई। अब तक अनेक सजल शतक और सजल सप्तकों के अतिरिक्त व्यक्तिगत सजल संग्रह भी प्रकाशित किए जा चुके हैं और यह क्रम अनवरत जारी है।